नैनो के दर्पण में
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नारी ने नर पर विश्वास किया,
नर ने नारी को निराश किया.
कठिन अग्निपरीक्षा ली राम ने , अपनी पत्नी सीता की ,
पवित्रता की उस मूर्ति की , परम पुण्य परिणीता की.
त्याग दिए फिर सीता को वे , प्रजा की सुख की खातिर,
एक कर्तव्य को छोड़ अधुरा , दुसरे कर्तव्य की खातिर.
फिर भी कहलाये मर्यादा पुरुषोतम,
सीता का ही परिहास हुआ ,
नारी ने नर पर विश्वास किया,
नर ने नारी को निराश किया.
कैसी ज्ञान प्राप्ति की सुध, आखिर गौतम में जागी,
छोड़ गए पुत्र को भी वे ,यशोधरा रही अभागी.
ऋणी है गौतम यशोधरा के,और दुनिया कहती उनको ज्ञानी है,
मौन – पलायन गलत था उनका , मेरी नजर में अज्ञानी है.
गौतम से बुद्ध हो गए वो,
यशोधरा का ही उपहास हुआ,
नारी ने नर पर विश्वास किया,
नर ने नारी को निराश किया.
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