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…………हमारा वैभवशाली बिहार…………

नैनो के दर्पण में
नैनो के दर्पण में
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…………हमारा वैभवशाली बिहार…………

आओ हम सब मिलकर “जय हो बिहार भूमि की” बोलें
श्रधा सुमन अर्पित करें हम,भक्ति का निज हृदय द्वार हम खोलें
अहो भाग्य जो हम सब इसकी कोख से पैदा हुए
कहाँ कही इस सृष्टी में, हमसे वीर ज्यादा हुए.

हे वीर -प्रसू ,जगत-कल्याणी,बिहार-भूमि ,तुझे मेरा प्रणाम बरम्बार है
तेरी महिमा का वर्णन कर सकूँ मैं,नहीं ऐसा कोई शब्द ,छंद ,अलंकार है ………..

जग ने मानवता का पाठ , इसी भूमि से सिखा है
इसकी हर -एक संतान ,गौतम महावीर सरीखा है ………….

गौतम ने ज्ञान की खोज की ,दुनिया ने उसे अपनाया
ज्ञान -वर्षा में भीगे सब लोग ,तब गौतम “बुद्ध” कहलाया ………….

कर्मकांड की अगनी में जब ,जल रहे थे सबके प्राण
बौद्ध – धर्मं ले आया गौतम ,किया सबका परित्राण……………

आधी से अधिक दुनिया उस समय ,बौद्ध -धर्मं अपना चुकी थी
तथागत की शरण में जाकर ,बुद्ध को देवता मान चुकी थी…………..

अहिंसा का पाठ सबको ,वर्धमान महावीर ने सिखलाया
जैन धर्मं के इस तीर्थंकर ने ,सबको सच्चा जीवन -मार्ग दिखलाया

सभी जानते हैं महिमा ,जगत-जननी,जनक -सुता सीता की
पतिव्रता की उस मूर्ति की,परम पुण्य परिणीता की…………..

धर्म-पालन हेतु सीता ने ,राम संग वन -प्रस्थान किया
पति -धर्म का पालन कर,नारी चरित्र को महिमावान किया……….

वहीँ संस्कार है बिहार-पुत्रियों में ,वे पवित्रता की मूर्ति हैं
रन में दिखतीं हैं काली जैसी,छमा -दया में माँ दुर्गा की प्रतिमूर्ति हैं…………..

इन जैसी विदुषि संसार ने ,और नहीं कहीं पाया था
मंडन मिश्र की पत्नी ने ,शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में हराया था…………..

जिस समय साम्राज्यवाद में दुनिया दाहक रही थी
गणतंत्र की भीनी खुशबु ,वैशाली में महक रही थी…………..

दुनिया का प्रथम गणतंत्र ,लिच्छवी गणराज्य था
वहां किसी राजा का नहीं ,प्रजा का साम्राज्य था.

कहतें हैं उस समय वैशाली में ,एक सप्त- भूमि आवास था
नर -नरपतियों का नहीं ,वहां मां सरस्वती का निवास था…………….

हैं नहीं जानता नाम कौन ,महापंडित चाणक्य कौटिल्य का
कौन विद्वान फिर जनम लिया ,उस अर्थशास्त्री,कुतनितिग्य के तुल्य का…………………

अर्थशास्त्र का ज्ञान दुनिया को ,चाणक्य ने सिखलाया
कूटनीति का खेल भी,उनहोने था दिखलाया………….

विशव विजय की कामना से ,निकला सिकंदर ,भारत आया था
चाणक्य की कूटनीति को वह समझ नहीं पाया था……………

इधर क्रूरता बढ़ी उसकी, उधर सैन्य -कलह जागा
विश्व विजय की कामना छोड़कर ,सिकंदर एथेंस को भागा……………….

जिस समय ज्ञान-विज्ञान में ,दुनिया वाले बिलकुल अज्ञ थे
उस समय हम चरम पर थे,सर्वथा सर्वज्ञ थे………………

दिया मान पाई का आर्यभत्त ने,विज्ञान में क्रांति आई
दुनिया की प्रथम वेधशाला ,उनहोनें ही था बनवाई………..

पता लगा जब शुन्य का ,तब लोगों ने गणित को जाना
दुनिया ने तब इस विद्वान ,आर्यभत्त का लोहा माना……..
विशव के प्राचीनतम विश्वविद्यालय ,विक्रमशिला और नालंदा यहीं थे
ऐसे महान शिक्षास्थल , दुनिया में कहीं नहीं थे……

दूर-दूर से ज्ञान पिपासु ,यहाँ विद्दया सिखने आते थे
ज्ञान-गंगा में डूब-डूब कर,अपना जीवन धन्य पाते थे……..

विद्दया के हर संकाय ,यहाँ पढाये जाते थे
खगोल ,ज्योतिषी ,अर्थशास्त्र,ज्ञान-विज्ञान सिखाये जाते थे………..

प्रारंभ से ही हमारा बिहार ,शक्ति ,सत्ता का केंद्र है
शासक हैं हम ,शासित नहीं ,इस धरती के देवेन्द्र हैं…….

प्राचीन काल में ही मगध, एक वैभवशाली राज्य था
यहीं से संचालित करता चन्द्रगुप्त मौर्य, भारत का साम्राज्य था……..

सम्राट अशोक की कीर्ति उस समय,संपूर्ण विश्व में फैली थी
उस दुर्जेय योद्धा के सामने,हर किसी की आभा मैली थी………….

भारतवर्ष पर जिस समय,हूणों का आतंक था छाया
चौदह वर्षीय स्कन्दगुप्त ने,तब था उनसे संग्राम रचाया…..

हूणों का गर्व दलन हुआ, स्कन्द ने उन पर विजय पाई
भारतवर्ष को उसने , महानाश से बचाई …..

सन संतावन में भी हमने था ,अपना शौर्य दिखलाया
राष्ट्रभक्ति का अनुपम पाठ ,हमने था सबको सिखलाया…
सत्तर वर्षीय वीर कुंवर ने ,जब अंगरेजों से रण था ठाना
अंगरेजों ने भी तब ,उस वयोवृद्ध का लोहा था माना …………..

प्रचन्ड वीरता से युद्ध किया ,अपना प्राण गंवाया
मरते-मरते भी उसने आजादी का अलख जगाया………..

कारगिल युद्ध में जिस समय ,देश पर खतरा उमड़ रहा था
वीर अरविन्द उस समय रणक्षेत्र में अकेले कूद पड़ा था……………

उस रिपुनाशक ने मरते-मरते भी अपना धर्म निभाया
कई शत्रुओं का दलन किया ,वीरगति को पाया…………………

वहीं वीरता ,वाही उत्साह ,हम सभी रगों में दौड़ रहा है
कुछ सन्देश देने के इच्छा से ,मानो वह कह रहा है………….

तम् से प्रकाश को जा ,अज्ञान से ज्ञान को
धर्मं की रक्षा हेतु ,तुम त्याग देना प्राण को……………..

हर क्षेत्र में आगे रहना ,जीतना हमारा स्वभाव है
छल ,कपट ,ईर्ष्या ,द्वेष का ,यहाँ सर्वथा आभाव है……………..

और जीत भी ऐसी की जो,अपनी परिश्रम से मिले
अपनी योग्यता ,बाहुबल ,अपनी शक्ति से मिले…………………

उन्नति और अवनति ,प्रकृति का नियम अटल है
विधाता के इस विधान पे ,चल सकता किसका बल है……………

जो आज है गर्त में ,श्रृंग पे वही रहा होगा कभी
उसकी कीर्ति रश्मियाँ ,तभी तो देख रहे है सभी……………

आज भी हम बिहारावासी ,हर क्षेत्र में है प्रवीण
नए कला ,नया ज्ञान से,हम बने रहते हैं नवीन …………..

संसार भले ही कह रहा हो,बिहार पिछड़ा प्रदेश है
लेकिन ज्ञान विज्ञान में आगे भला ,हमसे कौन सा देश है………………..

जो हमारी योग्यता ,शक्ति से भ्रमित रहा करते हैं
वे ही योग्य को योग्य ,पुज्ज्यनीय को पूज्य कहने से डरते हैं………….

हमारा बिहार भारतवर्ष की राष्ट्रीय एकता का सूत्रधार है
इस आर्यावर्त की उन्नति का एकमात्र आधार है……….

चाहे जग कुछ भीं कहे ,हम अपना धर्म जानते हैं
मानवता की रक्षा को हम,सर्वोपरि मानते हैं…………………

आन-शान की रक्षा में ,हम प्राण भी दे सकते हैं
सत्य की बलिवेदी पे हम ,ख़ुशी-ख़ुशी चढ़ सकते हैं……………..

बड़े भाग्यवान हैं हम सब,जो इस भूमि पर जीवन पाया
यही इच्छा है की ,बार-बार यहीं जन्मे यह काया……………..

द्वारा ,
आलोक रंजन पाण्डेय

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